nalanda vishwavidyalaya ki sthapna kisne ki thi|नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास
nalanda vishwavidyalaya ki sthapna kisne ki thi
दोस्तों आज के पोस्ट में हम पड़ेंगे नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना कब हुई थी तथा इस का विध्वंस कब हुआ था
यहां प्राचीन भारत में नालंदा विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विश्व विख्यात केंद्र रहा था यह दुनिया का सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक है
- स्थापन काल :
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने [413 - 455 ईपू] में की थी नालंदा विश्वविद्यालय को हेमंत कुमार गुप्त के उत्तर अधिकारियों का पूरा सहयोग संरक्षण मिला गुप्त वंश के पतन के बाद भी आने वाले सभी शासक वंश ने इसके संरक्षण में अपना महत्वपूर्ण योगदान जारी रखा और बाद में इस महान सम्राट हर्षवर्धन और पाल शासक का भी संरक्षण मिला स्थानीय शासकों तथा विदेशी शासकों से भी नालंदा विश्वविद्यालय को अनुदान मिलता था
nalanda vishwavidyalaya ki sthapna kisne ki thi
- परिसर :
नालंदा विश्वविद्यालय को अत्यंत सुनियोजित ढंग से और विस्तृत क्षेत्र में बनाया गया था विश्वविद्यालय का पूरा परिसर विशाल दीवारों से घिरा था विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना था नालंदा विश्वविद्यालय में उत्तर से दक्षिण की ओर मठों का कतर हुआ करता था अभी तक खुदाई में 13 मठ मिले हैं पुरातत्व विभाग के अनुमान से और भी अधिक मठों के होने की संभावना है एक मठ में कई मंजिल होते थे मठों के कमरे में सोने के लिए पत्थरों के बने हुए चौकी हुआ करते थे पुस्तके दीपक इत्यादि रखने के लिए आले भी बने हुए थे हर एक मठ के आंगन में एक कुआं भी बना हुआ होता था | 10 मंदिर 8 भवन अनेक प्रार्थना कक्ष और अध्ययन करने के कक्ष के अलावा सुंदर बगीचे झीले भी होती थी परिसर में
- छात्रावास :
विश्वविद्यालय में छात्रों के रहने के लिए विशेष व्यवस्था होती थी जैसे कि 300 कक्ष तथा एक या एक से अधिक छात्रों के रहने की व्यवस्था का भी इंतजाम था यहां पर कुछ भिक्षु छात्र एक कमरे में रहते थे नालंदा विश्वविद्यालय में निशुल्क शिक्षा दी जाती थी छात्रों को निशुल्क शिक्षा भोजन वस्त्र आवास और औषधि उपचार प्राप्त होता था राज्य के राजा की और से नालंदा विश्वविद्यालय को दो सों गांव दान में मिले थे जिन से प्राप्त आए और अनाज से विश्वविद्यालय का खर्च चलता था और इसके अलावा राजा और धनी सेठों द्वारा दिए गए दान से भी विश्वविद्यालय का व्यय चलता था
- छात्र शिक्षा :
नालंदा विश्वविद्यालय भारत में उच्च शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण विश्व विख्यात केंद्र था यहां विश्व का प्रथम पूर्णतः आवासीय विश्वविद्यालय था महायान बौद्ध धर्म के शिक्षा केंद्र में हिनयान बौद्ध धर्म के साथ ही दूसरे धर्म के छात्र भी पढ़ते थे इसके अलावा अनेक देशों के छात्र भी नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ते थे जैसे जापान, तिब्बत, चीन, कोरिया, फ्रांस, तुर्की, इंडोनेशिया
इस विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों की संख्या करीब 10,000 और अध्यापकों की संख्या 2000 थी यहां पर धर्म ही नही बल्कि राजनीति, शिक्षा, इतिहास, ज्योतिष, विज्ञान आदि की भी शिक्षा छात्रों को दी जाती थी बौद्ध धर्म से शिक्षण संस्थान के प्रमुखता से जुड़ा होने के पश्चात भी इस विश्वविद्यालय में हिंदू तथा जैन मतों से संबंधित अध्ययन कराए जाने के संकेत मिलते हैं और इसके साथ ही साथ वेद, विज्ञान, संख्या, खगोलशास्त्र, मूर्तिकला, शिल्प, व्याकरण, वास्तुकला, योगशास्त्र, चिकित्साशास्त्र, दर्शन, शल्यविद्या, तथा ज्योतिष भी पाठ्यक्रम में शामिल थे बिहार के नालंदा विश्वविद्यालय में छात्रों को आचार्य द्वारा मौखिक व्याख्यान के माध्यम से शिक्षा देते थे इसके अलावा पुस्तकों का व्याख्यान भी होता था
nalanda vishwavidyalaya ki sthapna kisne ki thi
- छात्र प्रवेश प्रक्रिया :
नालंदा विश्वविद्यालय में प्रवेश प्रक्रिया बहुत ही कठिन होता था और इसी वजह से नालंदा विश्वविद्यालय में सिर्फ प्रतिभाशाली विद्यार्थी ही प्रवेश ले पाते थे नालंदा विश्वविद्यालय में प्रवेश पाने के लिए विद्यार्थियों को तीन प्रकार के कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता था और जो विद्यार्थी इस परीक्षा में उत्तीर्ण होता था उसी विद्यार्थी को नालंदा विश्वविद्यालय में प्रवेश मिलता था तथा इस विश्वविद्यालय में शुद्ध आचरण संघ के नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक होता था
- पुस्तकालय :
नालंदा विश्वविद्यालय में नौ तल का एक विराट पुस्तकालय था जिसमें 3 लाख से अधिक पुस्तकों का संग्रह था तथा 90 लाख पांडुलिपिया थी इस पुस्तकालय को इख्तियारुद्दीन मोहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने आक्रमण करके इसे आग के हवाले कर दिया था यह पुस्तकालय लगातार 3 महीने तक जलता रहा था इससे आप यह अनुमान लगा सकते हैं कि पुस्तकालय में कितनी सारी पुस्तके थी जो 3 महीने तक लगातार जलती रही थी
इस बात से हम यह अंदाजा लगा सकते हैं कि यदि उस समय नालंदा विश्वविद्यालय पर आक्रमण नहीं होता तथा नालंदा विश्वविद्यालय का विनाश ना हुआ होता तो आज हमारे भारत का शिक्षा प्रणाली एजुकेशन लेवल दुनिया में सबसे उच्च श्रेणी का होता
nalanda vishwavidyalaya ki sthapna kisne ki thi
- नालंदा विश्वविद्यालय पर आक्रमण :
नालंदा विश्वविद्यालय पर आक्रमणकारियों ने 3 बार आक्रमण कर नष्ट किया था लेकिन सिर्फ दो बार ही इस को पुननिर्मित किया गया था
1. पहला आक्रमण स्कंद गुप्त के शासन काल के दौरान [455-467 ईस्वी] में मिहिरकुल के तहत ह्यून के कारण हुआ था जिसे फिर स्कंद गुप्त के उत्तरअधिकारियों ने पुस्तकालय की मरम्मत करवाई थी
2. दूसरा आक्रमण गोदास ने सातवीं शताब्दी की शुरुआत में किया था इस बार [606-648 ईस्वी] में बौद्ध राजा हर्षवर्धन ने नालंदा विश्वविद्यालय की मरम्मत करवाई थी
3. तीसरा और आखरी विनाशकारी आक्रमण 1193 में तुर्क सनकी सेनापति इख्तियारुद्दीन मोहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने किया था प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को इख्तियारुद्दीन मोहम्मद बिन बख्तियार खिलजी और उसके सेना ने आक्रमण कर पूरी तरह से कर नष्ट कर दिया था
nalanda vishwavidyalaya ki sthapna kisne ki thi
भारत के (मगध बिहार का पुराना नाम) में स्थित नालंदा विश्वविद्यालय का गौरवशाली इतिहास रहा था
दोस्तों उम्मीद करता हूं कि यह पोस्ट आपके स्टडी के लिए सहायक होगी
{दोस्तों इख्तियारुद्दीन मोहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को क्यों नष्ट किया था अगर आपको इसके बारे मेंं भी जानना है तो मैं इस पर भी एक पोस्ट लिख सकताा हूं कमेंट में जरूर बताएं}
Informative article
जवाब देंहटाएंSir bakhtiar khilji ne nalanda vishwavidyalay per aakraman kyon Kiya tha
जवाब देंहटाएं